शाम की सोच: धीरे चलने की कला

जब दिन ढलता है और रोशनी नरम हो जाती है, तो ज़िंदगी भी हमें धीमा चलने का इशारा देती है।

शाम का आसमान धीरे-धीरे सुनहरा हो रहा था। उसने खिड़की से बाहर देखा और सोचा — हर चीज़ को जल्दी पाने की कोशिश में हम कितना कुछ खो देते हैं।

पहले वह हमेशा दौड़ती रहती थी — काम, लक्ष्य, और अपेक्षाएँ। लेकिन आज, बस कुछ पल के लिए, उसने खुद से कहा: "रुक जाओ।" और उसी रुकने में उसे राहत मिली।

धीरे चलना मतलब रुकना नहीं होता, बस सफ़र को महसूस करना होता है। जब उसने हर कदम पर ध्यान दिया, तो उसने पाया कि रास्ता पहले से ज़्यादा खूबसूरत है।

ज़िंदगी की रफ़्तार को थामकर देखिए — शायद आपको वही जवाब मिल जाए जिसे आप तेज़ी में ढूंढते रहे।